74 साल की तुलसी गौड़ा के लिए पेड़-पौधे बच्चे की तरह हैं। छोटी झाड़ियों वाले पौधे से लेकर लंबे पेड़ों को कब कैसी देखभाल की जरूरत है वह इसे अच्छी तरह से समझती हैं। इसीलिए इन्हें जंगल की एन्सायक्लोपीडिया भी कहा जाता है। वह कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन कई राज्यों के युवा इनसे यही कला समझने के लिए मिलते हैं। पेड़ और हर्ब्स की प्रजातियों के बारे में उनकी जानकारी विशेषज्ञों से भी ज्यादा है। 1 लाख से अधिक पौधे लगा चुकी हैं। उम्र के इस पड़ाव पर हरियाली बढ़ाने और पर्यावरण सहेजने का उनका अभियान जारी है। भारत सरकार ने पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा की इसी उपलब्धि के लिए हाल ही में पद्मश्री से नवाजा है।
पौधों की नॉलेज ने अफसरों को चौंकाया
तुलसी कर्नाटक के होनाली गांव में रहती हैं। उन्होंने बेहद कम उम्र में पौधरोपण की शुरुआत ऐसे पेड़ों से की जो अधिक लंबे थे और हरियाली फैलाने के लिए जाने जाते थे। धीरे-धीरे उन्होंने कटहल, अंजीर और दूसरे बड़े पेड़ों लगाकर जंगलों में पौधरोपण शुरु किया। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारी उनके इस काम से आश्चर्यचकित हुए क्योंकि उनके लगाए पौधों में अलग-अलग किस्म के पौधे थे जो हरे-भरे थे। उनका लगाया एक भी पौधा सूखा नहीं। छोटे पौधों के बारे में उनकी नॉलेज ने अफसरों को सोच में डाल किया।
रिटायरमेंट के बाद भी अभियान जारी
बेशक तुलसी कभी स्कूल नहीं गईं लेकिन कम उम्र में ही छोटे-छोटे पौधों के बारे में उनके ज्ञान ने अफसरों को सोच में डाल किया। पर्यावरण से यही लगाव के कारण फॉरेस्ट डिपार्टमेंट में नौकरी मिली। नौकरी अस्थायी थी। लगातार पौधों की देखभाल और लगन के कारण फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने स्थायी नौकरी का ऑफर दिया। लगातार 14 सालों तक नौकरी की। गरीबी में पली-बढ़ी तुलसी ने रिटायरमेंट के बाद भी पौधों को बचाने का अभियान जारी रखा। अब वह पेंशन से गुजर बसर कर रही हैं।
सादगी से जीवन जीने वाली पर्यावरण मित्र
तुलसी आज भी बेहद सादगी के साथ रहती हैं। चूल्हे पर ही खाना पकाती हैं। पिछले 60 सालों में लगाए छोटे-बड़े पौधों की देखरेख में ही उनका दिन बीत रहा है। पर्यावरण को सहेजने के लिए उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड, कविता मेमोरियल समेत कई अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।
नई पीढ़ी इनसे ले रही सीख
पूरो राज्य से लोग तुलसी के पास पेड़ों की जानकारी और इस लगाव को समझने के लिए आते हैं। वह नई पीढ़ी को इसे समझाती हैं और पर्यावरण को सहेजन की कला को साझा करती हैं। तुलसी दुनियाभर में पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर नाराजगी भी जाहिर करती हैं। वह कहती हैं पेड़ों की कटाई आने वाली पीढ़ियों के लिए ठीक नहीं है। वह कहती हैं पर्यावरण को बचाने के लिए बबूल जैसे पेड़ भी लगाए जाने चाहिए जो आर्थिक तौर पर फायदा भी पहुंचाते हैं और कुदरत की खूबसूरती में भी इजाफा करते हैं।